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आप सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ प्राणी हैं

भारतीय धर्म शास्त्रों में मनुष्य को ईश्वर का शक्तिशाली अंश माना है। ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कलाकृति तथा राजकुमार कहा है कि वह गरिमामय जीवन जिए ।

मनुष्य सृष्टि का सबसे समुन्नत, ईश्वरीय शक्तियों से भरा हुआ, असीम सिद्धियों को धारण किये हुए सबसे शक्तिशाली प्राणी है। बुद्धि और ज्ञान से यह प्राणियों का सम्राट है। मनुष्य सर्वशक्तियों का समूह है। भगवान ने अपने रूप में मनुष्य की सृष्टि की है। सर्वश्रेष्ठ ज्ञान उसके मन, शरीर और आत्मा में भर दिया है। इसी शरीर में देवत्व का दर्शन होता है। उसी से दैवी चेतना विकसित होकर ईश्वर की ज्योति जगमगाती है।

मनुष्य का निर्माण ईश्वरीय नियम, संदेश, सद्भावनाओं और विवेक आदि के व्यापक प्रसार तथा सृष्टि में सत्य-न्याय और प्रेम की स्थापना के लिए किया गया है। ईश्वर को मनुष्य ही ऐसा प्राणी मिला, जिसके द्वारा अन्य प्राणियों द्वारा किया हुआ शक्ति का दुरुपयोग रोका जा सकता था। छल, झूठ, कपट, पाखण्ड, निष्ठुरता, स्वार्थ, कपट, शोषण, अपहरण और बेईमानी का अन्त हो सकता था। उन्होंने मनुष्य को ऐसी दिव्य शक्तियाँ दीं, जिनके द्वारा सात्विक वृत्तियों की प्रतिष्ठापना हुई, असत्य का अन्त हुआ और धर्म की ध्वजा फहरी सत्य, समानता और सदाचार का व्यापक प्रसार कर मनुष्य ने सृष्टि को रहने योग्य बनाया है। मानवीय अन्तरात्मा की सात्विक वृत्तियों के प्रयोग से ही यह संसार रहने योग्य बना हुआ है।

मनुष्य के अन्दर ईश्वर का जो केन्द्र है, उसे हम 'आत्मा' कहते हैं। यह मनुष्य का शक्ति केन्द्र है, जिसके द्वारा हमें ईश्वर के गुप्त संदेश निरन्तर मिला करते हैं। आत्मा के आदेश से मनुष्य योग्यतम और श्रेष्ठतम कर्त्तव्य की ओर चलता है, पुण्य संचय करता है, अन्य प्राणियों से उच्च स्तर पर चढ़ता है। सद्गुणों को बढ़ाता है, आत्म बल तथा विवेक को जागृत करता है। वास्तव में मनुष्य में अन्य जीवों से अधिक विकसित होने की जो क्रिया चल रही है, उसका प्रधान कारण आत्मा के गुप्त दैवी आदेश ही हैं।

प्रकृति- विज्ञान के (विद्वान) डाक्टर ई. बी. जेम्स ने बताया कि 'योग्यतम का चुनाव' ही प्रकृति का नियम है। दूसरे शब्दों में प्रकृति स्वयं अच्छे बुरे बलवान और निर्बल, अयोग्य और योग्यतम का चुनाव, प्रतिपल, प्रतिक्षण करती रहती है। जो निर्बल और अयोग्य हैं, वे स्वतः नष्ट हो जाते हैं। प्रकृति उन्हें नहीं रखना चाहती। उसके दरबार में अयोग्य की सजा मौत है। वह बलवान और योग्यतम जीवों को ही जीवित रहने देती है। एक बलवान के लिए वह असंख्य शक्तिहीनों को नष्ट कर देती है। आँधी, ओले, तूफानों में कमजोर वृक्ष टूटकर गिर पड़ते हैं, किन्तु मजबूत ज्यों के त्यों दृढ़तापूर्वक खड़े रहते हैं। कमजोर प्राणी बीमारी, युद्ध, गरीबी में पिसकर समाप्त हो जाते हैं। बड़ी मछलियों की रक्षा के लिए अनेक छोटी मछलियों को उनका ग्रास बनना पड़ता है। वृक्षों को पूरी खुराक देने के लिए छोटे-छोटे पौधों को नष्ट होना पड़ता है। एक पशु को पालने के लिए अनेक छोटे-छोटे कीट पतंग, घास के तृणों का अन्त हो जाता है। यह 'वीर भोग्या वसुन्धरा' निर्बल के लिए नहीं, सबल और सामर्थ्यवान के लिए ही है और मनुष्य ही वह पूर्ण विकसित प्राणी है, जो संसार के असंख्य पशु पक्षियों पर राज्य कर रहा है। उसके शरीर से कई गुने बड़े शरीर वाले प्राणी हैं, जो बात की बात में उसे मसल सकते हैं परन्तु नहीं ऐसा नहीं होता। मनुष्य अपने बुद्धि वैभव और बौद्धिक, मानसिक शक्ति से सबको परास्त कर देता है। ईश्वर का वरद हस्त सदा उसके साथ है। हमारा वह शक्तिशाली पिता, गुप्तरूप से शक्ति का स्रोत हमारे पीछे है, तब हम भला कैसे अशक्त, असहाय और अयोग्य बने रह सकते है? हम सब जीवों के सिरमौर हैं। सब निम्रतर जीवों के स्वामी हैं। हम स्रष्टा हैं। शुचि हैं। हम निर्विकार हैं। हमारे कण-कण में ईश्वरीय शक्ति का निवास है। हमें आत्मशक्ति से सर्वत्र राज्य करना है।

मनुष्यों! तुम सर्वश्रेष्ठ प्राणी हो तुम्हारी शक्तियों का पारावार नहीं जिन अचूक ब्रह्मास्त्रों को लेकर इस पृथ्वी पर अवतीर्ण हुए हो, उनके मुकाबले में अन्य कोई कदापि नहीं ठहर सकता।

तुम परमात्मा के अमर पुत्र हो। सम्राटों के सम्राट, परमात्मा के युवराज हो। तुम्हें ऐसे-ऐसे दिव्य गुणों से विभूषित किया गया है कि दूसरा कोई जीव तुम्हारे मुकाबले में न आ सके। तुम्हें अपनी भौतिक, - मानसिक और आध्यात्मिक सम्पदाओं से युक्त होना चाहिए। अनन्त, अखण्ड, सुख शांति का भागी बनना चाहिए।

इच्छन्ति देवाः सुन्वतं, न स्वप्नाय स्पृहयन्ति यन्ति प्रमादमन्द्राः


याद रखो, जो जागकर (मनुष्योचित) शुभ कर्म करता है, देवता उसी को चाहते हैं। अर्थात् उसी के भीतर देवशक्तियाँ जाग्रत होती हैं। जो सोये पड़े रहते हैं, देवशक्तियाँ उनमें नहीं जागती या उनसे प्रेम नहीं करतीं। समझ जाओ, जो प्रमादी हैं, उन्हें कोई सहायता नहीं देता।

मनुष्यों अपनी मानवता प्राप्त करो मोह और आलस्य-निद्रा से जागो ऋचाएँ जागे हुए की ही इच्छा करती हैं। सोम का वही लाभ ले सकता है। सोम उसी को मिलता है। इसलिए आपको जागृति से मैत्री करनी चाहिए। आपको मानव जीवन व्यर्थ के कामों में बिताने के लिये नहीं दिया गया है। 

आप बहुत कुछ कर सकते हैं
श्री हेनरी हैरिसन ब्राउन ने मनोविज्ञान के दो संकेतों का विस्तृत विशेषण किया है और उनका

विचार है कि इन दोनों की शक्तियों को सही रूप से समझने वाला व्यक्ति ही संसार में विजयी हो सकता है। वे मनुष्य की समस्त मानसिक शक्तियों को पुनः दो संकेतों के पीछे-पीछे आना मानते हैं। पहला संकेत है 'मैं कर सकता हूँ। मनुष्य के आत्म विश्वास को पुष्ट करता है, शक्तियाँ जगाता है, उसे अपनी सिद्धि और सफलता का विश्वास हो जाता है, सृजनात्मक विचारक शक्तिवर्धक प्रभाव हमारे शरीर का संगठन पर पड़ता है।

दूसरा संकेत है 'मैं कुछ नहीं कर सकूँगा' से निराशा के विचार हमारे गुप्त मन में जाते हैं मुख मलीन हो जाता है और शरीर तथा मस्तिष्क की शक्तियों का हास होने लगता है। यह पाठ हमें आत्मविश्वासी होने के लिए प्रेरणास्पद शिक्षण देता है।


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